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प्रयागराज में संत महात्मा के दो गुटों में झड़प

कहा जाता है की जो इंसान हर मोह माया से मुक्त हो जाता है वही सच्चे मायने में महात्मा संत कहलाता है, भगवत गीता में भी यही उल्लेख है की जो हर मोह माया से मुक्त हो, जिसे किसी से ना भय हो ना ही कोई उत्साह, जो गुस्सा, जो क्लेश से मुक्त हो, जो स्थिर बुद्धि का हो वही संत कहलाता है, पर आज के वक्त में हर कोई संत महात्मा बन जा रहा है, भगवा पहन के कोई भी रोड पर निकल जा रहा है और खुद को संत बताकर खुद की दुकान चला रहा है भले उसे शास्त्रों का श भी ना पता हो, आज के वक्त में संत महात्मा के नाम पर सिर्फ और सिर्फ ठगी और लोगों को लूटने का काम किया जा रहा है, संत बनना एक व्यापार हो गया है, आज के वक्त में कई ऐसे संत महात्मा है जिनके ऊपर कई तरह के हत्या, बलात्कार जैसे कानूनी मामले चल रहे हैं, इतना सब होने के बाद भी आज की जनता बाबाओं के चक्कर में आने से बच नहीं पाते हैं, पर ये सारे संत महात्मा सिर्फ लोगों के आस्था से खिलवाड़ करते हैं और कुछ नहीं, ऐसा ही कुछ मामला है प्रयागराज का जहां खुद को संत महात्मा कहने वाले लोग आपस में ही भीड़ गए दो धड़ों में बंटे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के संतों के बीच बृहस्पतिवार को मारपीट हो गई। इससे काफी देर तक अफरातफरी मची रही। दारागंज में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्रपुरी की अध्यक्षता में बैठक का आयोजन किया गया।

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इसी तरह दारागंज में ही श्री पंचायती अखाड़ा निर्मोही में महंत राजेंद्र दास की अध्यक्षता में बैठक का आयोजन किया गया। बैठक के दौरान दोनों धड़ों के संतों में पहले कहासुनी हुई। इसके बाद मारपीट हो गई। इससे काफी देर तक अफरातफरी का माहौल रहा। 

अखाड़ा परिषद के दोनों धड़ों के संत भूमि आवंटन की मांग को लेकर बृहस्पतिवार को प्रयागराज मेला प्राधिकरण कार्यालय पहुंचे थे। बताया जाता है कि इस दौरान निर्मोही अखाड़े के महंत राजेंद्र दास से कुछ संतों से कहासुनी हो गई, जो देखते ही देखते मारपीट में बदल गई।

इससे मेला कार्यालय पर अफरातफरी मच गई। मौके पर जूना अखाड़े के संरक्षक और अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरि ने बीच बचाव कर मामला शांत कराया।  अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद को लेकर संतों के दो धड़ों में काफी दिनों से विवाद चल रहा है।

अखाड़ों और साधुओं को अपने पक्ष में करने के लिए रस्साकसी चल रही है। दूसरा धड़ा अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र गिरि को अध्यक्ष मानने के लिए तैयार नहीं है। दूसरे धड़े ने बुधवार को शाही स्नान और पेशवाई आदि मुगलकालीन शब्दों को बदलकर कुंभ छावनी प्रवेश और कुंभ अमृत स्नान नाम करण कर दिया है।

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इस पूरे मामले पर यही एक बड़ा सवाल खड़ा होता है की ये जीतने भी ख़ुद को संत महात्मा कहते है क्या वाकई ये मोह माया से मुक्त है क्या वाकई ये स्थिर बुद्धि के हैं ? सवाल बहुत हैं पर जवाब एक भी नहीं सच कहूं तो यहां भी लड़ाई सत्ता और कुर्सी की है, पैसों और लालच की है पर फिर भी जनता इन्हें संत महात्मा का दर्जा देकर इनके चंगुल में फंस कर अपना सब कुछ उनके हवाले कर देती है, ये सारे संत महात्मा लोगों के डर का फायदा उठाकर सिर्फ अपना व्यापार चला रहे हैं और अपना खज़ाना भर रहे हैं, आज के वक्त में संत महात्माओं ने अपना ही धर्म बना रखा है, अपना ही भगवान बना के रखे हैं, जिसका डर दिखाकर संत महात्मा खुद का फायदा उठाते हैं और जनता को बेवकूफ बनाकर सिर्फ उनके भावनाओं और आस्था से खिलवाड़ करते हैं।

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