आज के वक्त में जमीन के लिए लोग कुछ भी कर गुज़र जाने को तैयार रहते हैं, एक जमीन के टुकड़े के लिए भाई अपने भाई के जान के दुश्मन बन जाते हैं तो वहीं दूसरे के जमीन को हथियाने के लिए लोग सारी हदें पार कर जाते हैं, ऐसा ही कुछ मामला है उत्तर प्रदेश के मेरठ का जहां एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, पूरे 53 सरकारी स्कूलों के कृषि फार्म पर अवैध तरीके से अतिक्रमण का मामला सामने आया है । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ के 53 सरकारी स्कूलों की कृषि फार्म भूमि की लीज गठित कमेटी की संस्तुति के बगैर देने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा कि कमेटी यह देखे कि पिछली लीज की शर्तें क्या थीं. रुपये स्कूल खाते में जमा किये गये था या नहीं. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जय भगवान की जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है.कोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी मेरठ को सभी 53 स्कूलों को भी इस आदेश की जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. साथ ही डीएम व बीएसए को दो अधिवक्ता न्यायमित्रों की रिपोर्ट व दो रिसर्च एसोसिएट के सुझावों पर कोई वैधानिक अड़चन न हो तो, अमल में लाने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने न्यायमित्र अधिवक्ता विपुल कुमार व राय साहब यादव और कोर्ट से संबद्ध रिसर्च एसोसिएट ऋषभ शुक्ल व दीक्षा शुक्ला के इस नतीजे पर पहुंचने में दिए गए सहयोग की सराहना की है.याचिका में मेरठ जिले के कक्केरपुर गांव के सरकारी स्कूल के फार्म को लीज पर देने में प्रक्रिया का पालन करने और अवैध कब्जे हटाने की मांग की गई थी. इस पर कोर्ट ने दो अधिवक्ताओं को न्यायमित्र नियुक्त किया और मेरठ जिले के अन्य स्कूलों का निरीक्षण कर रिपोर्ट व सुझाव मांगा. न्यायमित्रों ने अपनी रिपोर्ट में विभिन्न अनियमितताओं व खामियों का खुलासा करते हुए व्यवस्था दुरुस्त करने के सुझाव दिए. कोर्ट से संबद्ध दो रिसर्च सहायकों ने भी कुछ सुझाव दिए.रिपोर्ट में मेरठ के 53 स्कूलों में कृषि फार्म पाया गया. कहा गया कि इन्हें लीज पर देने की शर्तें 31जुलाई 2018 के शासनादेश में हैं, जिसके अनुसार ग्राम प्रधान या पालिका अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित हो. कमेटी में एसडीएम द्वारा नामित नायब तहसीलदार रैंक से ऊपर का अधिकारी व विद्यालय के प्रधानाध्यापक सदस्य हों. वही भूमि लीज पर देने के लिए अधिकृत है. लेकिन कमेटी कहीं नहीं है. मनमाने तरीके से लीज दी गई है.जिसने भी एक बार लीज ली, जमीन पर कब्जा कर लिया और लीज से मिला पैसा बेहतरी के लिए स्कूल के खाते में जमा नहीं किया गया. इस मामले में पूर्व व वर्तमान प्रधानाचार्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. रिपोर्ट में कहा गया कि स्कूलों में छात्रों की कमी है. प्राइवेट स्कूलों के छात्रों को संख्या दिखाने के लिए फर्जी ढंग से पंजीकृत किया गया है. कई स्कूलों में 50 से भी कम छात्र हैं. जबसे स्कूल में खाना बनाने की व्यवस्था की गई है, शिक्षा का स्तर गिरता गया है. अध्यापकों में पढ़ाने की रुचि नहीं है. सुझाव दिया कि छात्रों की भोजन से नहीं परिवार की आर्थिक मदद की जाए, क्योंकि सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है.रिसर्च एसोसिएट्स ने कहा अध्यापकों की बायोमेट्रिक उपस्थिति दर्ज हो. सीसी कैमरे से ब्लॉक स्तर पर निगरानी हो. बीएसए वर्ष में कम से कम दो बार स्कूल का निरीक्षण अवश्य करें. परीक्षा के लिए छात्रों की 70 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य हो. अध्यापकों की नियुक्ति छात्र संख्या की बजाय विषय व कक्षा के आधार पर की जाए. कोर्ट ने इन सुझावों व रिपोर्ट की प्रति डीएम मेरठ, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी व महाधिवक्ता कार्यालय को अनुपालन के लिए भेजने को कहा है.
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