भाजपा और संघ का समीकरण काफी पुराना है, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या फिर बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह दोनों ही संघ यानी आरएसएस के पूर्व सदस्य रहे हैं इसी बीच एक और बड़ा नाम आता है और वह है राम माधव का अगर आपको याद हो की पिछले साल यानी 2023 में जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक ने दा वायर में दिए गए इंटरव्यू में राम माधव पर रिश्वत ऑफर करने के आरोप भी लगाए थे लेकिन उस समय माधव पॉलिटिकली सक्रिय नहीं थे। वजह कुछ भी हो सकती है चाहे फिर भाजपा आलाकमान की नाराजगी हो या नजरंदाजी?2014 में जम्मू कश्मिर में संभाली थी कमानसाल 2014 में भाजपा ने देश में सरकार बनाने के साथ-साथ जम्मू कश्मीर में भी 25 सीट हासिल की इन 25 सीटो में भाजपा का भगवा ध्वज फहराने में राम माधव की निर्णायक भूमिका रही थी। जम्मू कश्मीर की इतनी बड़ी जीत के बाद भी साल 2019 में राम माधव को भाजपा ने दरकिनार कर दिया था ऐसे में अब यानी साल 2024 में फिर से राम माधव की पॉलिटीकल एंट्री हुई है। इस बार भी वह जम्मू कश्मीर की घाटी में कमल खिलाने का काम करेंगे। राजनीति के जानकारों का मानना है की साल 2019 में जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया था तो उस बैठक में भी राम माधव मौजूद नहीं थे और ना ही उन्हें इस की कोई जानकारी थी, 2020 में भाजपा ने उन्हें महासचिव के पद से हटा दिया और साल 2021 में एक बार फिर आरएसएस ने उन्हें अपनी केंद्रीय समिति में शामिल कर लिया संघ के साथ-साथ नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंडिया फाउंदेशन के प्रमुख रहे हैं, बीजेपी राम माधव के इसी अनुभव का फायदा उठाना चाहती है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से विधानसभा चुनाव होने वाले हैं राम माधव का संघ से जुडावभाजपा में शामिल होने से पहले की राम माधव की कहानी को देखें तो वह ‘बाल कार्यकर्ता’ के रूप में उदय हुए और आपातकाल के दौरान छिपे हुए आरएसएस नेताओं तक संदेश पहुंचाता रहे। बाद में,वह खुद संघ के एक कुशल नेता बन गए।आरएसएस के बारे में लोगों की धारणा से राम माधव की छवि बिलकुल अलग है। रंगीन खादी के कुर्ते,नए जमाने के स्मार्टफोन और जोरदार अंग्रेजी बोलने वाले राम माधव आरएसएस का नया चेहरा बन गए। उन्हें दिल्ली में आरएसएस का प्रवक्ता बनाया गया था। 2014 के चुनाव में भाजपा की जोरदार जीत के बाद उन्हें बीजेपी महासचिव बनाया गया। बता दें की भाजपा में आरएसएस के सदस्य पार्टी और संगठन को एकजुट होकर काम करने में मदद करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह एक तरह से वापसी लग रही है। लेटरल एंट्री से भर्तियों के विज्ञापन को वापस लेने, वक्फ बिल को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने, रियल एस्टेट डी-इंडेक्सेशन पर यू-टर्न और प्रसारण विधेयक को वापस लेने के बाद राम माधव की बीजेपी में वापसी हुई है। यह व्यावहारिक राजनीति राम माधव को 5 साल के अंतराल के बाद फिर से एक्शन में लाएगी। क्या वह जम्मू-कश्मीर में भाजपा के लिए चमत्कार कर पाएंगे? इतिहास को देखें तो इतिहास के साथ-साथ हाली में हुए परिसीमन अभियान के बाद भूगोल भी उनके साथ है ।
By Sajal
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