कहा जाता है की पुलिस कानून के रक्षक और जनता के सेवक होते हैं जो जनता की रक्षा के लिए काम करते हैं पर कभी कभी कुछ पुलिस वाले रक्षक की जगह भक्षक बन जाते हैं, जो अपने फायदे के लिए किसी भी मासूम की जान लेने से भी कतराते नहीं है, हम सभी ने 2017 में आई अक्षय कुमार अभिनीत जॉली एल एल बी फिल्म देखी थी जिसमें कुछ पैसों की लालच में पुलिस विभाग के बड़े अधिकारी ने आतंकवादी की जगह किसी निर्दोष आदमी को मारकर उस हत्या को इनकाउंटर घोषित कर देता है । मैं आज इस फिल्म का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि कुछ ऐसा ही मामला है पंजाब के मोहाली का जहां सीबीआई की विशेष अदालत ने 1992 में अमृतसर में हुए फर्जी मुठभेड़ में दो युवकों बलदेव सिंह उर्फ देबा और कुलवंत सिंह की हत्या के मामले में दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को उम्र कैद की सजा सुनाई है, आरोपियों में तत्कालीन एसएचओ मजीठा पुरुषोत्तम सिंह और एएसआई गुरभिंदर सिंह शामिल हैं, उन्हें हत्या और साजिश रचने के आरोप में सजा सुनाई गई है, जबकि इंस्पेक्टर चमन लाल और डीएसपी एसएस सिद्धू संदेह के लाभ की वजह से बरी हो गए ।आखिर क्या हुआ था 1992 में ? 1992 में बासरके निवासी बलदेव सिंह देबा और नंगली निवासी लखविंदर सिंह उर्फ लक्खा को एसएचओ छेहरटा महिंदर सिंह और सब-इंस्पेक्टर हरभजन सिंह अपनी टीम के साथ दोनों को घरों से उठाते हैं और गिरफ्तार कर लेते हैं और यह दावा करते हैं की दोनों आतंकवादी थे, जो हत्या, जबरन वसूली, डकैती आदि सैकड़ों मामलों में लिप्त थें, इसके साथ ही पुलिस ने ये भी दावा किया था की दोनों तत्कालीन कैबिनेट मंत्री गुरमेज सिंह के बेटे की हत्या में भी शामिल थे, जबकि सच्चाई कुछ और ही थी, हकीकत में इनमें से एक सेना का जवान था और दूसरा सोलह साल का नाबालिग था । कैसे हुआ था एनकाउंटर : पुलिस के अनुसार जब बलदेव सिंह देबा को हथियार बरामद करने के लिए जगदेव कलां गांव ले जाया गया था तो आतंकवादियों ने पुलिस पर हमला कर दिया था, जिसमें बलदेव सिंह देबा और एक अज्ञात हमलावर की मौत हो गई थी, पुलिस की कहानी के अनुसार अज्ञात हमलावरों के शवों की पहचान बलदेव सिंह देबा और लखविंदर सिंह लक्खा के रूप में हुई थी, जबकि पुलिस ने न तो शवों को परिवार को सौंपा और न ही उन्हें लावारिस घोषित कर स्वयं उनका अंतिम संस्कार किया ।1995 से शुरू हुई जांच – बलदेव सिंह देबा के पिता बूटा सिंह के शिकायत के बाद 1995 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब पुलिस द्वारा अज्ञात शवों को लावारिस बताकर अंतिम संस्कार करने के मामले की जांच सीबीआई को सौंपा जिसके बाद सीबीआई मामले की जांच में जुट गई, साल 2000 में छेहरटा, खासा और मजीठा के 9 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अपहरण, अवैध हिरासत, साजिश, हत्या और जालसाजी के लिए अदालत में चार्जशीट पेश की गई थी, लेकिन इसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की याचिकाओं पर रोक लगा दी थी । जिसकी वजह से 30 साल तक सुनवाई रुक गई और 2022 में मामले की सुनवाई फिर से शुरू हुई और करीब 33 साल बाद इस मामले में फैसला सुनाया गया हालांकि इस दौरान पांच आरोपियों की मौत हो गई और बाकी चार आरोपी एसएस सिद्धू, इंस्पेक्टर/सीआईए चमन लाल, एसएचओ मजीठा गुरभिंदर सिंह और एएसआई प्रशोत्तम सिंह अदालत की सुनवाई में मौजूद रहें, सीबीआई ने एसएस सिद्धू, हरभजन सिंह, महिंदर सिंह, पुरुषोत्तम लाल, चमन लाल, गुरभिंदर सिंह, मोहन सिंह, पुरुषोत्तम सिंह और जस्सा सिंह के खिलाफ अपहरण, आपराधिक साजिश, हत्या, झूठे रिकॉर्ड तैयार करने के आरोप में 1999 में चार्जशीट दाखिल की थी, लेकिन गवाहों के बयान 2022 के बाद दर्ज किए गए क्योंकि इस दौरान हाईकोर्ट के आदेशों पर केस टलता रहा, जिसकी वजह से फैसला आने में इतनी देर हुई ।
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Pydhonie SI confirmed the arrest of two accused on After Body Found in Suitcase at Dadar Station! on
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