इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की तैयारी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ (INDIA) ने की है। यह कदम जस्टिस यादव द्वारा 8 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के विधिक प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अल्पसंख्यक समुदाय के बारे में दिए गए विवादास्पद बयानों के बाद उठाया जा रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि जज के बयान ने देश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया और न्यायपालिका की निष्पक्षता को चोट पहुँचाई।जस्टिस यादव के विवादास्पद बयान-जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विहिप के एक कार्यक्रम में अपने भाषण के दौरान कहा था कि भारत “बहुसंख्यकों की इच्छाओं” के अनुसार चलेगा और यहाँ कानून बहुसंख्यकों के अनुरूप ही लागू होगा। इस बयान में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नकारात्मक और भेदभावपूर्ण टिप्पणी की। जस्टिस यादव ने कहा, “जब एक समुदाय के बच्चों को सहनशीलता और दयालुता सिखाई जाती है, तो दूसरे समुदाय के बच्चों को बचपन से ही जानवरों की हत्या दिखाकर यह सब सिखाया जाता है। तो वे दयालु और उदार कैसे हो सकते हैं?”इन बयानों को अल्पसंख्यक विरोधी और नफरत फैलाने वाले करार दिया गया है। विपक्षी दलों का मानना है कि जज के इन बयानों से धार्मिक भेदभाव और साम्प्रदायिक तनाव फैल सकता है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है। इसके अलावा, जस्टिस यादव के इस बयान को राजनीतिक विचारधाराओं के प्रचार के रूप में देखा जा रहा है, जिससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।विपक्षी दलों की महाभियोग की कार्यवाही-इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला लिया है। राज्यसभा में विपक्षी दलों के करीब 40 सांसदों ने इस मुद्दे पर नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई(एम), सीपीआई, राजद, आप और सपा के सांसद शामिल हैं। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर बयान दिया और कहा कि उनकी पार्टी के सभी सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।महाभियोग प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस दिशा में तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। यदि महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो इसे संसद में चर्चा के लिए रखा जाएगा, और यदि यह पारित होता है, तो जज को हटाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।महाभियोग प्रक्रिया की संवैधानिक स्थिति-संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत, उच्च न्यायालयों के जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यदि महाभियोग प्रस्ताव संसद में स्वीकार कर लिया जाता है, तो एक तीन-सदस्यीय समिति गठित की जाएगी। इस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद् शामिल होंगे। समिति आरोपों की जांच करेगी और जज को अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करेगी। यदि समिति जज को “दुर्व्यवहार का दोषी” पाती है, तो उसकी रिपोर्ट संसद में चर्चा और मतदान के लिए प्रस्तुत की जाएगी।महाभियोग प्रस्ताव को दोनों सदनों के कुल सदस्यों के बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है। यदि यह पारित होता है, तो जस्टिस यादव को पद से हटा दिया जाएगा।सुप्रीम कोर्ट और बार काउंसिल का रुख-इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया है और इलाहाबाद हाईकोर्ट से विहिप के कार्यक्रम के बारे में जानकारी मांगी है। इसके अलावा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने जस्टिस यादव के बयानों की कड़ी निंदा की है और कहा है कि यह बयान न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने वाला है।By- Sajal RaghuwanshiReporting For True To Life
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