बीजेपी का विजय रथ अभी भी जारी है दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के बाद अब बीजेपी ने छत्तीसगढ़ निकाय चुनाव में भी जीत का परचम लहराया है । 173 नगर निकायों, जिनमें 10 नगर निगम, 49 नगर पालिका परिषद तथा 114 नगर पंचायत शामिल हैं, में हुए चुनावों के नतीजे घोषित हो गए हैं। इन चुनावों में कुल 3200 वार्ड थे, जिनमें से भाजपा ने 1868, कांग्रेस ने 952 तथा अन्य ने 227 वार्डों में विजय प्राप्त की है। भाजपा की जीत से आश्चर्य नहीं हुआ – किसान महासभा के उपाध्यक्ष संजय पराते ने चुनावी नतीजों पर कहा की “भाजपा की जीत में आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि विधान सभा चुनाव के ठीक एक साल बाद होने वाले नगर निकाय चुनावों में साधारणतः सत्ता पक्ष का पलड़ा ही भारी रहता है। कांग्रेस की हार का भी दुख नहीं है, क्योंकि कांग्रेस की हार तय थी। शायद कांग्रेस को भी इसका दुख नहीं है, क्योंकि वह दिखावे के लिए और हारने के लिए ही चुनाव लड़ रही थी। लेकिन जो लोग संघ-भाजपा के रूप में देश पर मंडरा रहे खतरे को जानते-समझते हैं, उन्हें इस बात का दुख अवश्य है कि पिछले एक साल में कांग्रेस का जनाधार और कमजोर हुआ है और जिन सीटों पर विधानसभा चुनाव में उसे बढ़त हासिल थी, उन क्षेत्रों के नगर निकायों में भी उसने अपनी बढ़त खो दी है”।10 महापौर पदों पर बीजेपी का कब्जा – हर चुनाव की तरह छत्तीसगढ़ नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा ने अपना दमखम दिखाते हुए 10 नगर निगम के सभी महापौर पदों पर अपना कब्जा किया है। नगर पालिका परिषदों के सिर्फ 8 अध्यक्ष पदों पर कांग्रेस जीती है, जबकि आम आदमी पार्टी ने 1 और निर्दलीयों ने 5 पद जीते हैं। भाजपा 35 अध्यक्ष पदों पर जीतने में सफल रही है। इसी प्रकार, नगर पंचायत अध्यक्षों की केवल 22 सीटों पर ही कांग्रेस जीत पाई है, जबकि बसपा ने 1 और निर्दलीयों ने 10 सीटें जीती हैं। इन नगर निकाय प्रमुखों के पदों पर कांग्रेस को कुल मिलाकर 31.25% वोट मिले हैं और वार्ड के पार्षद सीटों पर 33.58%, जबकि भाजपा को क्रमशः 56.04% तथा 46.62% वोट मिले हैं। विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को क्रमशः 42.23% तथा 46.27% वोट मिले थे। विधानसभा चुनाव के वोटों से तुलना करने पर कांग्रेस के जनाधार में गिरावट स्पष्ट है। आखिर क्यों है कांग्रेस कमजोर – राजनीतिक विद्वानों का मानना है की कांग्रेस अपनी जिन कमजोरियों की वजह से हारती है, उन सभी कमजोरियों पर कांग्रेस कभी काम ही नहीं करती है । कांग्रेस पार्टी का संगठन अस्त व्यस्त और गुटबाजी से ग्रस्त है, जिसका नतीजा था कि एकजुट चुनाव प्रचार नहीं कर पाए। जनाधार वाले जमीनी नेताओं को टिकट देने के बजाए उसने पैसे खर्च कर सकने वाले प्रत्याशियों को तरजीह दी, लेकिन भाजपा के धन बल के आगे वे कहीं टिक नहीं पाए, अपने शासन काल में उसने बड़े-बड़े भ्रष्टाचार किए थे, जिसकी जांच का हवाला देते हुए भाजपा ने कई कांग्रेसी नेताओं और अफसरों को गिरफ्तार किया है। इन घोटालों का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है और वह भाजपा के आक्रामक हमलों को नहीं झेल पाई। कुल मिलाकर अगर बात की जाए तो सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब हर चुनाव में धूमिल नजर आ रही है, फिर चाहे वो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हो या फिर चाहे दिल्ली चुनाव हर चुनाव में कांग्रेस इस तरह से फिसड्डी नजर आ रही है जैसे मानो कोई नई पार्टी हो, दिल्ली चुनाव में कांग्रेस खाता खोलने में भी जद्दोजहद करते हुए नजर आ रही थी । इन सब नतीजों से सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है की आगामी चुनावों में कांग्रेस का क्या हाल रहता है क्या कांग्रेस बिहार और उत्तर प्रदेश चुनावों में खुद को संभाल पाती है या फिर इसमें भी उसे हार का की मुंह देखना पड़ेगा।
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