पिछले कई सालों से बुलडोजर जस्तिस का प्रभाव समाज में काफी हद तक देखने को मिला है ऐसे में कई लोग इसके पक्ष में है तो वहीं कई लोग इसका कड़ा विरोध करते हुए नजर आए हैं । जहां समाज का एक तबका बुलडोजर जस्तिस के फेवर में है तो वहीं एक तबका इसको असंवैधानिक मानता है । यूपी से शुरू हुआ बुलडोजर जस्तिस आज पूरे भारत में मशहूर है कई लोग तो यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा भी बुलाते हैं । कई बार अनेकों राज्यों कि बुलडोजर कार्रवाई कोर्ट तक भी जा पहुंची हैं, ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के आखिरी फैसले में CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने ‘बुलडोजर जस्टिस’ की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा, ‘बुलडोजर न्याय’ कानून के शासन के तहत अस्वीकार्य है।
अदालत ने कहा कि बुलडोजर न्याय न केवल कानून के शासन के विरुद्ध है, बल्कि यह मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। अगर इसे अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता एक डेड लेटर बनकर रह जाएगी।’ आगे कोर्ट ने कहा कि, बुलडोजर के माध्यम से न्याय न्यायशास्त्र की किसी भी सभ्य प्रणाली के लिए अज्ञात है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘एक गंभीर खतरा है कि यदि राज्य के किसी भी विंग या अधिकारी द्वारा उच्चस्तरीय और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है, तो नागरिकों की संपत्तियों का विध्वंस बाहरी कारणों से चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में होगा।’
अदालत ने छह आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया –
1.अदालत ने कहा,अधिकारियों को पहले मौजूदा भूमि रिकॉर्ड और मानचित्रों को सत्यापित करना होगा।
2. वास्तविक अतिक्रमणों की पहचान करने के लिए उचित सर्वे किया जाना चाहिए।
3.कथित अतिक्रमणकारियों को तीन लिखित नोटिस जारी किए जाने चाहिए।
4.आपत्तियों पर विचार किया जाना चाहिए और स्पष्ट आदेश पारित किया जाना चाहिए।
5.स्वैच्छिक हटाने के लिए उचित समय दिया जाना चाहिए।
6.यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त भूमि कानूनी रूप से अधिग्रहित की जानी चाहिए।
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अनिवार्य सुरक्षा उपाय निर्धारित करते हुए, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि किसी भी विध्वंस से पहले उचित सर्वेक्षण, लिखित नोटिस और आपत्तियों पर विचार किया जाना चाहिए। इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और आपराधिक आरोप दोनों लगाए जाएंगे, पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, ने आदेश दिया। “राज्य सरकार द्वारा इस तरह की मनमानी और एकतरफा कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता… अगर इसकी अनुमति दी गई, तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी।”
बता दें कि ये दिशानिर्देश सितंबर 2019 में यूपी के महाराजगंज जिले में पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश के घर को ध्वस्त करने के मामले में सुनाए गए हैं, यह मानते हुए कि राज्य द्वारा अपनाई गई पूरी प्रक्रिया ‘क्रूर’ थी।
क्या है अधिकारियों का दावा –
अधिकारियों ने दावा किया कि राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार के लिए विध्वंस आवश्यक था, वहीं जब इस मामले की जांच की गई तो जांच में उल्लंघन का एक पैटर्न सामने आया जिसे अदालत ने राज्य शक्ति के दुरुपयोग का उदाहरण बताया।
यूपी सरकार को 25 लाख का मुआवजा –
अदालत ने राज्य को याचिकाकर्ता को ₹25 लाख का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया और यूपी के मुख्य सचिव को अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने और घर को ध्वस्त करने के लिए जिम्मेदार दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का आदेश दिया।