भारत में चुनावी प्रक्रिया को लेकर एक बड़ा और महत्वपूर्ण मुद्दा चर्चा में है – वन नेशन वन इलेक्शन (एक राष्ट्र, एक चुनाव)। यह विषय वर्तमान में संसद के शीतकालीन सत्र में खूब उठ रहा है और इसके साथ ही राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लगातार सक्रिय रही है, और जब भी भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) कोई महत्वपूर्ण बिल पेश करती है, तो विपक्ष इसका विरोध करने से पीछे नहीं हटता।वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक पर हुई चर्चा17 दिसंबर 2024 को संसद में वन नेशन वन इलेक्शन पर चर्चा हुई, जिसमें कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को पेश किया। यह विधेयक लंबे समय से भाजपा के एजेंडे का हिस्सा बना हुआ था। केंद्र सरकार ने इस योजना को लागू करने के लिए 2 सितंबर 2023 को एक विशेष कमेटी बनाई थी। कमेटी का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे थे। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी। रिपोर्ट में यह कहा गया कि एक साथ चुनावों के आयोजन से चुनावी प्रक्रिया में सुधार हो सकता है और इससे संसदीय प्रणाली पर दबाव कम हो सकता है।विधेयक को मिली मंजूरीआज संसद में इस विधेयक को लेकर लंबी और गर्म बहस हुई। विधेयक को 269 सांसदों ने पक्ष में वोट दिया, जबकि 198 सांसदों ने इसके खिलाफ वोट डाला। यह विधेयक अब संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जा चुका है। इस बहस में शरद पवार की बेटी सुप्रीया सुले ने इस विधेयक का विरोध किया और इसे चुनाव के संघीय ढांचे पर हमला बताया। उनका कहना था कि यह कदम भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर सकता है।डीएमके का विरोधडीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम) के सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने भी इस विधेयक का विरोध किया। उनका कहना था कि यह विधेयक असंवैधानिक है और यह संघीय व्यवस्था के खिलाफ है। उन्होंने इसे लोगों की इच्छा के खिलाफ बताया और मांग की कि इस विधेयक को वापस लिया जाए। हालांकि, फिलहाल इस विधेयक को जेपीसी के पास भेजा जा चुका है, और अब यह देखना होगा कि जेपीसी इसका क्या रुख अपनाती है।कमेटी का गठन और रिपोर्टवन नेशन वन इलेक्शन को लेकर केंद्र सरकार ने 2023 में एक कमेटी बनाई थी, जिसमें कई प्रमुख नेता और विशेषज्ञ शामिल थे। इस कमेटी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, और चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी जैसे महत्वपूर्ण लोग शामिल थे। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपते हुए यह सिफारिश की कि भारत में एक साथ चुनाव कराना चुनावी प्रक्रिया में कई सुधार ला सकता है।संविधानिक और संघीय व्यवस्था पर सवालवन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में भाजपा के कई नेता हैं, जो इसे एक स्थिर और सशक्त लोकतांत्रिक प्रणाली की ओर बढ़ने का एक कदम मानते हैं। उनका कहना है कि यह चुनावों के समय पर दबाव को कम करेगा और राजनीतिक अस्थिरता को रोकने में मदद करेगा। वहीं, विपक्ष इसे एक संवैधानिक चुनौती और संघीय ढांचे पर आघात मानता है। विपक्षी दलों का कहना है कि इससे राज्य सरकारों के अधिकारों पर असर पड़ेगा और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।अंतिम निर्णय की प्रतीक्षाअब, सबसे बड़ा सवाल यह है कि जेपीसी इस विधेयक के बारे में क्या निर्णय लेती है और इसका क्या असर देश की राजनीति पर पड़ता है। क्या यह विधेयक लागू होगा और यदि हां, तो इससे भारतीय लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया में क्या बदलाव आएंगे? इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण होगा कि जनता की इस विधेयक पर क्या प्रतिक्रिया होती है, क्योंकि यह एक बड़ा और संवेदनशील मुद्दा है जो सीधे तौर पर लोकतंत्र और चुनावी प्रणाली से जुड़ा हुआ है।By- Sajal Raghuwanshi Reporting For True To Life.
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