दिल्ली में हर साल दिवाली के बाद एक समस्या भारी मात्रा में देखने को मिलती है और वह है वायु प्रदूषण के कारण होने वाली धुंध की जिसे अंग्रेजी में “SMOG” भी कहते हैं, इस धुंध कि परत से अनेक समस्याएं देखने को मिलतीं है चाहे फिर वह स्वास्थ्य संबंधित हों या फिर रोजमर्रा में होने वाले कार्यों में देरी होना ऐसे में जब यह समस्या देखने को मिलतीं है। तो इस समस्या का असर कहीं ना कहीं बच्चों के जीवन में काफी हद तक देखने को मिलता है, चाहे फिर उनके स्कूल की छुट्टी हो या फिर उनके स्वास्थ्य में दिक्कत अगर डाटा को देखें तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार,सोमवार को दिल्ली का औसत AQI 352 दर्ज किया गया, जो कि उच्च स्तर पर था।
रविवार को, राष्ट्रीय राजधानी में 24 घंटे का औसत AQI 335 रिकॉर्ड किया गया था। दिल्ली के अलावा, 5 अन्य भारतीय शहरों, जिसमें चंडीगढ़, चूरू, झुंझुनू, और मंडीदीप शामिल हैं, का AQI ” खराब’ श्रेणी में रहा। अगर बात करें मंगलवार यानी 12 नवंबर कि तो मंगलवार को भी दिल्ली का AQI 359 रहा aqi.in के अनुसार 12 नवंबर को दिल्ली के सबसे खराब AQI वाले इलाकों में दिल्ली इंस्टिट्यूट ऑफ़ टूल इंजीनियरिंग (418) लोनी(412), आईटीआई जहांगीरपुरी,405शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज 405 और प्रशांत विहार में 399 रहा।
खराब AQI का दिल्ली पर प्रभाव-
AQI यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक एक माप है जो हमें बताता है कि हवा में प्रदूषण का स्तर क्या है। इसे विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है, जैसे कि अच्छा, संतोषजनक, मध्यम, खराब, बहुत खराब, और खतरनाक। जब AQI 100 से नीचे होता है तो इसे सुरक्षित माना जाता है, लेकिन दिल्ली में अक्सर यह 300 से 500 के बीच पहुँच जाता है,जो कि गंभीर खतरे का संकेत है।
खराब AQI का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। विशेष रूप से बुजुर्गों, बच्चों और अस्थमा जैसी सांस की बीमारियों से ग्रसित लोगों के लिए यह हवा अत्यंत हानिकारक होती है। वायु प्रदूषण से न केवल फेफड़ों पर असर पड़ता है, बल्कि हृदय रोग, कैंसर, और अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
स्कूलों को बंद करने का सुझाव-
अपोलो अस्पताल में श्वास संबंधी मामलों के वरिष्ठ सलाहकार डॉक्टर निखिल मोदी ने कहा कि नियमित रोगियों के अलावा, जिन लोगों को पहले कोई श्वास संबंधी समस्या नहीं थी, उनमें भी नाक बहने, छींकने, खांसी और सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। डॉक्टर ने सुझाव दिया कि सरकार को बच्चों के लिए स्कूल बंद कर देना चाहिए, क्योंकि वे अभी भी असुरक्षित हैं।
डॉक्टर मोदी ने कहा कि जब भी प्रदूषण का स्तर एक निश्चित सीमा से अधिक होता है, सरकार ने स्कूल बंद करने का विकल्प चुना है। उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि सरकार ने कार्यवाही की है; जब भी प्रदूषण का स्तर एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है, वे स्कूल बंद करने का विकल्प चुनते हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि बच्चे एक कमजोर समूह से हैं। वयस्कों के रूप में हम मास्क पहनते हैं और खुद को बेहतर तरीके से सुरक्षित रख सकते हैं, लेकिन बच्चे आमतौर पर इन उपायों को प्रभावी ढंग से नहीं अपनाते। इसके अलावा, उनके फेफड़े अभी भी विकासशील अवस्था में होते हैं, इसलिए उन्हें इस प्रदूषण के कारण अधिक नुकसान होने की संभावना है।
By- Sajal Raghuwanshi
Reporting For True To Life