हाल ही में हरियाणा चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया जहां एग्जिट पोल में कांग्रेस को फायदा दिख रहा था तो वहीं नतीजे भाजपा की तरफ़ रुख कर गए जिसके बाद फिर से ईवीएम पर सवाल खड़े हो गए इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हरियाणा से बड़ी उम्मीद थी लेकिन इस चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए एक झटका साबित हुए,बीजेपी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था नायब सैनी ने सभी राजनीतिक भविष्यवाणियों और एग्ज़िट पोल को ग़लत साबित किया है और बीजेपी के लिए बड़ी जीत हासिल की है । इस चुनाव में बीजेपी को 48 सीट पर और कांग्रेस को 37 सीट पर जीत मिली है, यह जीत बीजेपी के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव था, जिसमें बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर थी, इस चुनाव में हार से पार्टी के पिछले दो दशक से नेता रहे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक भविष्य पर भी संशय बना हुआ है,क्योंकि हरियाणा में बीजेपी ने कुछ जाट बहुल सीटों पर भी जीत हासिल की है, जिसकी वजह पार्टी की सफल रणनीति मानी जा रही है,हालांकि बीजेपी के कई जाट नेता इस चुनाव में जीत से महरूम रहे. जानकारों की माने तो पार्टी को गैर-जाट सोशल इंजीनियरिंग की वजह से बहुमत मिल गया है ।
आखिर क्यों हारी कांग्रेस –
चौधरी छोटूराम की विरासत पर दावा करने वाले चौधरी बीरेन्द्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह को जाट बहुल सीट उचाना कलां पर हार का सामना करना पड़ा, बीजेपी के उम्मीदवार ने उन्हें 32 वोट से हरा दिया.
इस सीट पर दूसरे जाट नेताओं में वोट बंटे, जिसके कारण इस तरह का नतीजा आया है.
हालांकि बीजेपी के जाट नेता कैप्टन अभिमन्यु और ओम प्रकाश धनखड़ जैसे दिग्गज भी चुनाव जीतने में असफल रहे हैं बीजेपी के प्रदेश प्रभारी सतीश पुनिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि “जाट बीजेपी के साथ नहीं हैं, यह कांग्रेस का कुप्रचार था. बीजेपी जात-पात की राजनीति नहीं करती और पार्टी के कुशल प्रबंधन और मोदी जी के नेतृत्व की वजह से जनता ने पार्टी के पक्ष में जनादेश दिया है”।
2004 में जब कांग्रेस की सरकार हरियाणा में बनी थी तब हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष भजनलाल थे और विधायक दल के नेता अजय सिंह यादव, लेकिन पार्टी ने कमान जाट नेता चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को सौंपी, जिसके बाद विवाद हुआ और भजनलाल ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी,जिसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हुड्डा के नेतृत्व में दोबारा सरकार बनाई थी. लेकिन पहले जितनी सीटें नहीं मिल पाईं और पार्टी को दूसरे विधायकों का समर्थन लेना पड़ा था.
“2014 में पानीपत की रैली में हुड्डा ने कहा कि वो जाट पहले हैं और मुख्यमंत्री बाद में हैं. जिसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को 15 सीट ही मिल पाई थीं, कांग्रेस ने कभी जाति की राजनीति नहीं की है.” उसके बाद ये हुड्डा को कांग्रेस ने तीसरा मौका दिया था जिसमें असफलता ही मिली है, “जिस हिसाब से हुड्डा समर्थकों को टिकट मिला, ये साफ हो गया कि वे ही सीएम बनेंगे, जिसके बाद गैर-जाट लामबंद हुआ है. सिर्फ जाटों की बदौलत कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकती है।”